Hindi Varnamala | हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन

hindi varnamala – भारत की प्रमुख भाषा हिन्दी है । जिसको हम हर दिन बोलते है ,  हिन्दी वर्णमाला(hindi varnamala) को हिन्दी व्याकरण (hindi vyakaran) की जान या उसकी आत्मा बोला जाता है । जिसमे बहुत सारे अक्षर है जिसमे कुछ स्वर और कुछ व्यंजन है । english की तरह ही हिन्दी मे भी (alphabet) होते है ।

हिन्दी भाषा (hindi words) या हिन्दी साहित्य को समझने के लिए हिन्दी के वर्णमाला का ज्ञान होना  जरूरी है जिसमे हिन्दी लिखनाऔर पढ़ना दोनों शामिल है । हिन्दी वर्णमाल के हर एक अक्षर अलग अलग ध्वनियों से बना है “हिंदी भाषा” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की “भाष” धातु से हुई है। जिसका अर्थ है “बोलना या वाणी की अभिव्यक्ति”।

hindi varnamala

हमने अपनी पिछली पोस्ट मे आपको हिन्दी गिनती , हिन्दी पहाड़ा , और abcd के बारे मे बताया था । और आज हम आपको हिन्दी से जुड़े हिन्दी वर्णमाला के बारे मे बताने वाले है । की हिन्दी वर्णमाला मे कितने अक्षर होते , हिन्दी .वर्ण किसे कहते हैं varnamala in hindi मे । 


hindi letters chart

क्रउच्चारण के आधार पर लेखन के आधार पर
वर्ण 45 52
स्वर  10 13
व्यंजन 35 35

हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabet) में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण हैं। जिनमें से 10 स्वर और 35 व्यंजन हैं। परंतु लेखन के आधार पर 52 वर्ण हैं। जिनमें 13 स्वर, 35 व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन हैं। वस्तुतः वर्णों की संख्या के संबंध में कई मत हैं।

हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में कुल अक्षरों की संख्या 52 होती हैवर्ण या अक्षरों के क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित समूह को वर्णमाला (Varnamala) कहते हैं। अतः हिंदी भाषा में समस्त वर्णों के क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित समूह को हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) कहते हैं

hindi vranamal
 संस्कृत वर्णमाला में एक और स्वर है। इसे भी सम्मिलित कर लेने पर वर्णों की संख्या 46 हो जाती है। इसके अतिरिक्त, हिन्दी में अं, इ.ढ़ और अंग्रेज़ी से आगत ऑ ध्वनियाँ प्रचलित हैं। अँ अं से भिन्न है, ड ड से, ढ ढ से भिन्न है, इसी प्रकार ऑ आ से भिन्न ध्वनि है। वास्तव में इन ध्वनियों (अ, इ, ढ, ऑ) को भी हिन्दी वर्णमाला में सम्मिलित किया जाना चाहिए। इनको भी सम्मिलित कर लेने पर हिन्दी में वर्गों की संख्या 50 हो जाती है।
हिंदी भाषा को सीखने और समझने के लिए हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) को सीखना और समझना बहुत ज़रूरी है। हिंदी वर्णमाला (varnamala in hindi) में हिंदी भाषा में प्रयुक्त सभी ध्वनियों को शामिल किया गया है, जिनके बारे में हम इस लेख में जानेंगे।

हिन्दी मात्रा (hindi matra chart)

उ ऋ ए 
ऐ ओ औ  ा
 ि  ी   ु ू
  े  ैै ो ौ

वर्ण (Latter)

भाषा के द्वारा मनुष्य अपने भावों-विचारों को दूसरों के समक्ष प्रकट करता है तथा दूसरों के भावों-विचारों को समझता है। अपनी भाषा को सुरक्षित रखने और काल की सीमा से निकालकर अमर बनाने की ओर मनीषियों का ध्यान गया। वर्षों बाद मनीषियों ने यह अनुभव किया कि उनकी भाषा में जो ध्वनियाँ प्रयुक्त हो रही हैं, उनकी संख्या निश्चित है और इन ध्वनियों के योग से शब्दों का निर्माण हो सकता है। बाद में इन्हीं उच्चारित ध्वनियों के लिए लिपि में अलग-अलग चिह्न बना लिए गए, जिन्हें वर्ण (Latter) कहते हैं। जिनहे हम हिन्दी वर्णमाला (hindi varnamala) कहते है । 

 हिन्दी वर्णमाला (hindi varnamala) दो भागों में विभक्त है- स्वर और व्यंजन।

हिन्दी स्वर  (hindi vowels)

 अ आ
अंअः

 वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में हवा बिना किसी रूकावट के मुँह या नाक के द्वारा बाहर निकलती है उन्हें स्वर (Hindi Swar) कहते हैं।, उन्हें स्वर कहते हैं। हिंदी में अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ स्वर होते हैं. हिंदी वर्णमाला में ग्यारह (11 स्वर) स्वर होते हैं।

इसका अलावा कुछ येसे भी स्वर है जिनका उपयोग हिन्दी भाषा मे नही होता है उनका उपयोग संस्कृत मे किया जाता है । ॠ, ऌ एवं ॡ को हिंदी वर्णमाला में शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि इन वर्णों का संस्कृत भाषा में किया जाता है, हिंदी में नहीं।जो निम्न हैं

1) मूल स्वर – वे स्वर जिनके उच्चारण में कम-से-कम समय लगता है, अर्थात् जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों (Swar)की सहायता नहीं लेनी पड़ती है इनको लघुमूल या एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता है। ,मूल स्वर या हस्व स्वर कहलाते हैं;

जैसे-अ, इ, उ, ऋ।

2) सन्धि स्वर –  वे स्वर जिनके उच्चारण में मूल स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है, सन्धि स्वर कहलाते हैं। या जिन वर्णों के उच्चारण में हृस्व या मूल  स्वरों के उच्चारण से दूगना (दो मात्रा) समय लगता है उन्हे संधि स्वर कहते है ये दो प्रकार के होते हैं

दीर्घ स्वरवे स्वर जो सजातीय स्वरों (एक ही स्थान से बोले जाने  वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, दीर्घ स्वर कहलाते हैं;

जैसे

अ + अ = आ

उ+ उ =

 संयुक्त स्वर – वे स्वर जो विजातीय स्वरों (विभिन्न स्थानों से बोले जाने वाले स्वर) के संयोग से निर्मित हुए हैं, संयुक्त स्वर कहलाते हैं;

जैसे

अ+ उ = ओ

अ + ओ = औ

3) प्लुत स्वर – जिन वर्णों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से दूगना या हृस्व स्वरों से तीन गुना अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। आपने अक्सर यह देखा होगा कि कहीं कहीं राम को राऽम लिखा गया है, यहाँ “रा” और “म” के बीच में लगा हुआ निशान प्लुत स्वर को दर्शाता है। जहाँ यह निशान लगा होता है उससे पहले वाले अक्षर को उच्चारित करते समय तीन गुना अधिक समय लगता है। साधारण भाषा में कहें तो उस अक्षर को खींच कर उच्चारित किया जाता है।

जैसे- ‘3’ किसी को पुकारने या नाटक के संवादों में इसका प्रयोग करते हैं;

जैसे – राऊऽऽऽम

हिन्दी गिनती 


स्वरों का उच्चारण

हिन्दी वर्णमाल मे (hindi varnamala) उच्चारण स्थान की दृष्टि से स्वरों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, जो निम्न हैं

1 ) अग्र स्वर- जिन स्वरों (hindi Swar) के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग ऊपर उठता है,अग्र स्वर कहलाते हैं;

जैसे-इ, ई, ए, ऐ।

2 ) मध्य स्वर- जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा समान अवस्था में रहती है. मध्य स्वर कहलाते हैं;

जैसे-‘अ’

3) पश्च स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पश्च भाग ऊपर उठता है,पश्च स्वर कहलाते हैं;

जैसे-आ, उ, ओ, औ। 

इसके अतिरिक्त अॅ(), अं), और अ: (:) ध्वनियाँ हैं। ये न तो स्वर हैं और न ही व्यंजन। आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ने इन्हें अयोगवाह कहा है, क्योकि ये बिना किसी से योग किए ही अर्थ वहन करते हैं। हिन्दी वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों (Swar)के बाद और व्यंजनों से पहले निर्धारित किया गया है।


स्वरों का उच्चारण स्थान

                स्वर                                         उच्चारण स्थान
अ, आकंठ
इ, ईतालु
उ, ऊओष्ठ
मूर्धा
ए, ऐकंठ – तालु
ओ, औकंठ – ओष्ठ

हिंदी वर्णमाला व्यंजन

हिन्दी वर्णो के समूह या समुदाय को वर्णमाला (hindi varnamala) कहते है । हिंदी वर्णमाला के सभी 52 अक्षरों या वर्णों को एक चार्ट में दर्शाया जाता है, जिससे हिंदी के सभी वर्णों को समझना आसान हो जाता है।हिन्दी व्याकर्ण मे व्यंजन (vyanjan) 33 होते है । जो की नीचे है hindi chart मे । 

क्षत्र
ज्ञश्र

व्यंजन की परिभाषा – जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता है उन्हें व्यंजन (Hindi Vyanjan) कहते हैं। व्यंजन (vyanjan) वर्णों का उच्चारण करते समय हवा मुंह में कहीं ना कहीं रूक कर बाहर निकलती है। जब हम किसी वर्ण विशेष का उच्चारण करते हैं तो हमारे मुँह में या स्वरयंत्र में वर्ण विशेष के हिसाब से हवा को रूकावट का सामना करना पड़ता है। जब यह रूकावट हटती है तो इन वर्णों का उच्चारण होता है।

जैसे—क = क् + ।

सामान्यतया व्यंजन (vyanjan)  छ: प्रकार के होते हैं, जो निम्न है

स्पर्श व्यंजन – जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिला का कोई-न-कोई भाग मुख के किसी-न-किसी भाग को स्पर्श करता है, स्पर्श व्यंजन (sparsh vyanjan) कहलाते हैं। क से लेकर म तक 25 व्यंजन स्पर्श हैं। इन्हें पांच-पांच के वर्गों में विभाजित किया गया है। अतः इन्हें वर्गीय व्यंजन भी कहते हैं।

जैसे- क से ङ तक क वर्ग, च से अतक च वर्ग,ट से ण तक ट वर्ग.त से न तक तवर्ग. और प से म तक प वर्ग।

अनुनासिक व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु नासिका मार्ग से निकलती है, अनुनासिक व्यंजन (anunasik vyanjan) कहलाते हैं। ङ, ञ, ण, न और म

अनुनासिक व्यंजन हैं।

अन्तःस्थ व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख बहुत संकुचित हो जाताहै फिर भी वायु स्वरों की भाँति बीच से निकल जाती है, उस समय उत्पन्न होने वाली ध्वनि अन्तःस्थ व्यंजन (anth vyajan) कहलाती है। य, र, ल, व अन्तःस्थ

व्यंजन हैं।

ऊष्म व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गरमाहट या सुरसुराहट-सी प्रतीत होती है, ऊष्म व्यंजन (ushm vyajan) कहलाते हैं। श, ष, स और ह

ऊष्म व्यंजन है।

उत्क्षिप्त व्यंजन – जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा की उल्टी हुई नोंक तालु को छूकर झटके से हट जाती है, उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन (utkshipt vyajan) कहते हैं। इ, द

उत्क्षिप्त व्यंजन हैं।

संयुक्त व्यंजन जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्य व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है, संयुक्त व्यंजन (syukat vyajan) कहलाते हैं। जैसे

क् + 1 = क्ष (उच्चारण की दृष्टि से क् + छ = क्ष) त्+रत्र ज् + अ = ज्ञ (उच्चारण की दृष्टि से ग् + य = ज्ञ)

श् + र= श्र

इंग्लिश abcd 


व्यंजनों का उच्चारण

(hindi varnamala) उच्चारण स्थान की दृष्टि से हिन्दी-व्यंजनों (vyajan) को आठ वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

कण्ठ्य व्यंजन

जिन व्यंजन ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा के पिछले भाग से कोमल तालु का स्पर्श होता है,या हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण कंठ से किया जाता है, उन्हें कण्ठ्य व्यंजन (Kanth Vyanjan) कहते हैं।  कण्ठ्य ध्वनियाँ (व्यंजन) कहलाते हैं। क, ख, ग, घ, ङ कण्ठ्य व्यंजन हैं।

तालव्य व्यंजन

जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग कठोर तालु को स्पर्श करता है, तालव्य व्यंजन (taluk vyajan) कहलाते हैं। मतलब हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा तालु को स्पर्श करने से होता है च, छ, ज, झ, ञ और श, य तालव्य व्यंजन हैं।

मूर्धन्य व्यंजन

कठोर तालु के मध्य का भाग मूर्धा कहलाता है। जब जिहा की उल्टी हुई नोंक का निचला भाग मूर्धा से स्पर्श करता है, या हिंदी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा मूर्धा (तालु का बीच वाला कठोर भाग) को स्पर्श करने से होता है, उन्हें मूर्धन्य व्यंजन (murdhanay vyajan) कहते हैं। ऐसी स्थिति में उत्पन्न ध्वनि को मूर्धन्य व्यंजन कहते हैं। ट, ठ, ड, ढ, ण मूर्धन्य व्यंजन हैं।

दन्त्य व्यंजन

जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ  की नोंक ऊपरी दाँतों को स्पर्श करती है, या हिंदी वर्णमाला में जिन वर्णों का उच्चारण जीभ द्वारा दांतों को स्पर्श करने से होता है, उन्हें दन्त्य व्यंजन कहते हैं। दन्त्य व्यंजन (tanth vyajan)कहलाते हैं। त, थ, द, ध, स दन्त्य व्यंजन हैं।

ओष्ठ्य व्यंजन

जिन व्यंजनों के उच्चारण में दोनों ओष्ठों द्वारा श्वास का अवरोध होता है, ओष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। सरल भाषा मे हिंदी वर्णमाला के जिन वर्णों का उच्चारण होंठों के परस्पर मिलने से होता है, उन्हें ओष्ठ्य व्यंजन (oshatay vyajan)कहते हैं। प, फ, ब, भ, म ओष्ठ्य व्यंजन हैं।

दन्त्योष्ठ्य व्यंजन

जिन व्यंजनों के उच्चारण में निचला ओष्ठ दाँतों को स्पर्श करता है, दन्त्योष्ठ्य व्यंजन कहलाते हैं। ‘व’ दन्त्योष्ठ्य व्यंजन है।

वत्स्य व्यंजन

जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा ऊपरी मसूढ़ों (वर्क्स) का स्पर्श करती है, वयं व्यंजन कहलाते हैं; जैसे-न, र, ला

 स्वरयन्त्रमुखी या काकल्य व्यंजन

हिंदी वर्णमाला (hindi varnamala) में ह को काकल्य व्यंजन कहते हैं क्योंकि इसका उच्चारण स्थान कंठ से थोड़ा नीचे होता है।

हिन्दी  कारक 


बोलने  विधि के आधार पर वर्गीकरण

स्पर्शी या स्पृष्ट

हिन्दी वर्णमाला (varnamala in hindi) मे वे वर्ण जिनका उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु या सांस जीभ या होंठ से स्पर्श करती हुई बाहर निकलती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। क-वर्ग, च-वर्ग, ट-वर्ग, त-वर्ग, प-वर्ग के वर्ण स्पर्श व्यंजन होते हैं। आसान भाषा में कहें तो “क” से लेकर “म” तक के वर्णस्पर्श या स्पृष्ट व्यंजन कहलाते हैं। इन्हें वर्गीय व्यंजन (vargiya vyanjan) भी कहा जाता है। स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25 होती है।

स्पर्श-संघर्षी व्यंजन

च, छ, ज, झ, ञ ( च-वर्ग ) – को स्पर्श-संघर्षी व्यंजन (vyanjan)भी कहते हैं क्योंकि इन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी प्राण वायु स्पर्श के साथ-साथ संघर्ष करती हुई बाहर निकलती है अर्थात हमारी सांस घर्षण करती हुई बाहर निकलती है।

नासिक्य व्यंजन

जिन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी प्राण वायु हमारी नाक से होकर गुज़रती है, उन्हें नासिक्य व्यंजन कहते हैं। हिंदी वर्णमाला में ङ, ञ, ण, न, म नासिक्य व्यंजन कहलाते हैं।

उत्क्षिप्त व्यंजन

ड़ एवं ढ़ – उत्क्षिप्त व्यंजन है। इन वर्णों को द्विस्पृष्ठ या ताड़नजात व्यंजन भी कहते हैं।  इनका उच्चारण करते समय हमारी जीभ हमारे तालु को छुते हुए एक झटके के साथ नीचे की तरफ़ आती है, जिससे हवा बाहर निकलती है और इन वर्णों का उच्चारण होता है।

लुंठित व्यंजन

 को लुंठित व्यंजन कहा जाता है क्योंकि “र” का उच्चारण करते समय हमारी प्राण वायु जीभ से टकरा कर लुढ़कती हुई बाहर निकलती है। आसान भाषा में कहें तो जब हम “र” का उच्चारण करते हैं तो हमारी जीभ में कंपन होता है, इसलिए “र” को प्रकंपित व्यंजन भी कहते हैं।

अंत:स्थ व्यंजन

य एवं व अंत:स्थ व्यंजन है। इनका उच्चारण स्वर एवं व्यंजन के बीच का उच्चारण है। “य” एवं “व” का उच्चारण करते समय जीभ, तालु और होंठों का बहुत थोड़ा सा स्पर्श होता है। इन्हें अर्ध स्वर (Ardh Swar) तथा ईषत् स्पृष्ट व्यंजन भी कहते हैं।

पार्श्विक व्यंजन

ल पार्श्विक व्यंजन है। “ल” का उच्चारण करते समय हमारी सांस जीभ के बग़ल (पार्श्व) से गुज़रती है।

उष्म व्यंजन

श, ष, स, ह व्यंजनों को उष्म व्यंजन कहते हैं। इन वर्णों का उच्चारण करते समय प्राण वायु हमारे मुंह से धर्षण (संघर्ष) करती हुई निकलती है। संघर्ष के साथ निकलने की वजह से इन्हें संघर्षी भी कहते हैं।

संयुक्त व्यंजन

क्ष, त्र, ज्ञ, श्र व्यंजनों को संयुक्त व्यंजन कहते हैं, क्योंकि इन वर्णों को दो व्यंजनों के योग से बनाया गया है।

क्ष = क् + ष

त्र = त् + र

ज्ञ = ग् + य

श्र = श् + र

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स्वर घोषत्व आधार पर वर्गीकरण

आपने ध्यान दिया होगा कि कुछ वर्णों का उच्चारण करते समय जब हवा हमारे गले से बाहर निकलती है तो हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन होता है, जबकि कुछ वर्ण ऐसे भी हैं जिनको उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता है। अतः इसी कंपन के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण किया गया है। स्वर तंत्रियों में कंपन के आधार पर इन वर्णों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

1) अघोष व्यंजन

घोष का अर्थ स्वरतन्त्रियों में ध्वनि का कम्पन है। अर्थात अघोष शब्द “अ” और “घोष” के योग से बना है। अ का अर्थ नहीं और घोष का अर्थ कंपन होता है। अतः जिन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन नहीं होता है, उन वर्णों को अघोष वर्ण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का पहला एवं दूसरा वर्ण तथा श, ष, स अघोष व्यंजन होता है. हिंदी में क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स वर्णों को अघोष व्यंजन कहते हैं।

2) सघोष या घोष व्यंजन

जिन वर्णों को उच्चारित करते समय हमारी स्वर तंत्रियों में कंपन होता है, उन वर्णों को सघोष वर्ण कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन वर्ग का तीसरा, चौथा और पांचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह सघोष व्यंजन होता हैं. हिंदी में ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ड़, ढ, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह वर्णों को सघोष व्यंजन कहते हैं। सभी स्वर सघोष व्यंजन होते हैं।

प्राण वायु के आधार पर वर्गीकरण

हमारी प्राण वायु की मात्रा के आधार पर भी इन वर्णों का वर्गीकरण किया जाता है। किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाली प्राण वायु की मात्रा के आधार पर इन वर्णों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।

1) अल्पप्राण व्यंजन

जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी प्राण वायु की कम मात्रा लगती है, उन्हें अल्प प्राण व्यंजन कहते हैं। व्यंजन वर्गों के दूसरे तथा चौथे वर्णों को छोड़कर शेष सभी वर्ण अल्पप्राण व्यंजन होते हैं। हिंदी में क, ग, ङ, च, ज, ञ, ट, ड, ण, त, द, न, प, ब, म, ड़, ढ़ अल्पप्राण व्यंजन होते हैं. सभी स्वर भी अल्पप्राण होते हैं.

2) महाप्राण व्यंजन

जिन वर्णों के उच्चारण में हमारी प्राण वायु की मात्रा अधिक लगती है, उन्हें महाप्राण व्यंजन कहते हैं। स्पर्श व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का दूसरा एवं चौथा वर्ण तथा उष्म व्यंजन महाप्राण व्यंजन होते हैं. हिंदी में ख, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ, ध, फ, भ, श, ष, स, ह महाप्राण व्यंजन होते हैं.

उच्चारण 

उच्चारण की दृष्टि से ध्वनि (व्यंजन) को तीन वर्गों में बाँटा गया है जो की नीचे है । 

(1) संयुक्त ध्वनि

दो-या-दो से अधिक व्यंजन ध्वनियाँ परस्पर संयुक्त होकर ‘संयुक्त ध्वनियाँ’ कहलाती है; जैसे-प्राण, घ्राण, क्लान्त, क्लान, प्रकर्ष इत्यादि। संयुक्त ध्वनियाँ अधिकतर तत्सम शब्दों में पाई जाती हैं।

 (2) सम्पृक्त ध्वनि

एक ध्वनि जब दो ध्वनियों से जुड़ी होती है, तब यह ‘सम्पृक्त ध्वनि’ कहलाती है; जैसे—’कम्बल’। यहाँ ‘क’ और ‘ब’ ध्वनियों के साथ म् ध्वनि संयुक्त (जुड़ी) है। 

(3) युग्मक ध्वनि

जब एक ही ध्वनि द्वित्व हो जाए, तब यह युग्मक ध्वनि’ कहलाती है; जैसे-अक्षुण्ण, उत्फुल्ल, दिक्कत, प्रसन्नता

कम्प्युटर की परिभाषा 


हिन्दी वर्णमाल से जुड़े सवाल

तो हमने आपको ऊपर सभी हिन्दी वरमाला (hindi varnamala)के शब्दो के बारे मे बता दिया है । नीचे इन से जुड़े कुछ सवालो के जवाब है
Question : हिन्दी वर्णमाला (hindi varnamala) में कितने वर्ण होते है?

ans : हिंदी वर्णमाला में उच्चारण के आधार पर 45 वर्ण हैं। जिनमें से 10 स्वर और 35 व्यंजन हैं। परंतु लेखन के आधार पर 52 वर्ण हैं। जिनमें 13 स्वर, 35 व्यंजन और 4 संयुक्त व्यंजन हैं। वस्तुतः वर्णों की संख्या के संबंध में कई मत हैं।


Question : मूल स्वर कितने होते हैं?

ans : ये चार हैं– अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं


Question :हिंदी वर्णमाला (hindi varnamala) के जनक कौन है?

ans : हिंदी वर्ण माला की जन्मदात्री संस्कृत है


Question :  वर्ण के कितने भेद होते हैं?

ans :  हिंदी वर्णमाला में वर्ण के दो भेद हैं, स्वर और व्यंजन।


Question : क से लेकर ज्ञ तक कितने अंक होते हैं?
ans :  हिंदी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण शामिल होते हैं। इनमें से वर्णो में 11 स्वर, 4 संयुक्त व्यंजन, 4 अन्तस्थ व्यंजन, 1 अनुस्वार, 4 ऊष्म व्यंजन, 25 स्पर्श व्यंजन, 2 द्विगुण व्यंजन और 1 विसर्ग शामिल हैं
Question : 35 व्यंजन कौन कौन से हैं?

ans :  हिन्दी वर्णमाला में कुल 35 व्यंजन होते हैं। कवर्ग : क , ख , ग , घ , ङ चवर्ग : च , छ , ज , झ , ञ टवर्ग : ट , ठ , ड , ढ , ण ( ड़ ढ़ ) तवर्ग : त , थ , द , ध , न पवर्ग : प , फ , ब , भ , म अंतस्थ : य , र , ल , व् उष्म : श , ष , स , ह संयुक्त व्यंजन : क्ष , त्र , ज्ञ , श्र यह वर्णमाला देवनागरी लिपि में लिखी गई है।


Question : ज्ञ क्या है स्वर या व्यंजन?

ans : हिन्दी मे ज्ञ, क्ष और त्र हिन्दी के संयुक्त व्यंजन हैं। संयुक्त व्यंजन– वे व्यंजन जो दो या दो से अधिक वर्णो से मिलकर बनते हैं, संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। क्ष, त्र, ज्ञ और श्र हिन्दी के संयुक्त व्यंजन हैं।


और पड़े 


निष्कर्ष

प्यारे दोस्तों उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे आर्टिकल के माध्यम से समझ आ गया होगा । hindi alphabet ,hindi letters, hindi words,hindi varnamala, vyanjan ,hindi vowels ये सब क्या होते है ।  अगर आपको कोई भी कठिनाई आए तो आप हम से नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं आप का कमेंट हमारे लिए महत्वपूर्ण है आगे भी इसी तरह से आपको अपने आर्टिकल के माध्यम से और चीजों के बारे में जानकारी प्रदान करता रहूँगा।

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