Mahakaleshwar jyotirlinga
यदि आप मध्य प्रदेश की तीर्थ नगरी में उज्जैन महाकाल का मंदिर पुण्य सलिला शिप्रा तट के निकट स्थित 6ठी शताब्दी ईसा पूर्व में निर्मित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकालेश्वर (mahakaleshwar) के दर्शन करने जारहे हैं तो कुछ जरूरी बातअवश्य जान लें। और इस शिव कथा को पड़े .
महाकाल का इतिहास
काल के दो अर्थ होते हैं– एक समय और दूसरा मृत्यु। महाकाल को ‘महाकाल’ इसलिए कहा जाता है कि प्राचीन समय में यहीं से संपूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था इसीलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम ‘महाकालेश्वर‘रखा गया है। पौराणिक कथा के अनुसार इस शिवलिंग की स्थापना राजा चन्द्रसेन और गोप-बालक की कथा से जुड़ी है।
कालों के काल महाकाल ( mahakal ) के यहां प्रतिदिन सुबह भस्म आरती होती है। इस आरती की खासियत यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। इस आरती में शामिल होने के लिए पहले से बुकिंग की जाती है।
महाकाल के दर्शन करने के बाद जूना महाकाल के दर्शन जरूर करना चाहिए। कुछ लोगों के अनुसार जब मुगलकाल में इस शिवलिंग को खंडित करने की आशंका बढ़ी तो पुजारियों ने इसे छुपा दिया था और इसकी जगह दूसरा शिवलिंग रखकर उसकी पूजा करने लगे थे। बाद में उन्होंने उस शिवलिंग को वहीं महाकाल के प्रांगण में अन्य जगह स्थापित कर दिया जिसे आज ‘जूना महाकाल’कहा जाता है। हालांकि कुछ लोगों के अनुसार असली शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए ऐसा किया गया।
ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल ही एक मात्र सर्वोत्तम शिवलिंग है। कहतेहैं कि
‘आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्।भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तुते।।
‘अर्थात आकाश में तारक शिवलिंग, पाताल में हाटकेश्वर शिवलिंग तथा पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंगहै।
वर्तमान में जो महाकालेश्वर (mahakaleshwar ) ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही करने दिए जाते हैं। मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है।
गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पौराणिक कथाओं
Mahakleshwar jyotirlinga
अवंती नाम से एक रमणीय नगरी था, जो भगवान शिव को बहुत प्रिय था। इसी नगर में एक ज्ञानी ब्राह्मण रहते थे, जो बहुत ही बुद्धिमान और कर्मकांडी ब्राह्मण थे। साथ ही ब्राह्मण शिव के बड़े भक्त थे। वह हर रोज पार्थिव शिवलिंग बनाकर उसकी आराधना किया करते थे। ब्राह्मण का नाम वेद प्रिय था, जो हमेशा वेद के ज्ञान अर्जित करने में लगे रहते थे। ब्राह्मण को उसके कर्मों का पूरा फल प्राप्त हुआ था।
रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक का राक्षस रहता था। इस राक्षस को ब्रह्मा जी से एक वरदान मिला था। इसी वरदान के मद में वह धार्मिक व्यक्तियों पर आक्रमण करने लगा था। उसने उज्जैन के ब्राह्मणों पर आक्रमण करने का विचार बना लिया। इसी वजह से उसने अवंती नगर के ब्राह्मणों को अपनी हरकतों से परेशान करना शुरू कर दिया।
उसने ब्राह्मणों को कर्मकांड करने से मना करने लगा। धर्म-कर्म का कार्य रोकने के लिए कहा, लेकिन ब्राह्मणों ने उसकी इस बात को नहीं ध्यान दिया। हालांकि राक्षसों द्वारा उन्हें आए दिन परेशान किया जाने लगा। इससे उबकर ब्राह्मणों ने शिव शंकर से अपने रक्षा के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया।
ब्राह्मणों के विनय पर भगवान शिव ने राक्षस के अत्याचार को रोकने से पहले उन्हें चेतावनी दी। एक दिन राक्षसों ने हमला कर दिया। भगवान शिव धरती फाड़कर महाकाल के रूप में प्रकट हुए। नाराज शिव ने अपनी एक हुंकार से ही दूषण राक्षस को भस्म कर दिया। भक्तों की वहीं रूकने की मांग से अभीभूत होकर भगवान वहां विराजमान हो गए। इसी वजह से इस जगह का नाम महाकालेश्वर (Mahakaleshwar) पड़ा गया, जिसे आप महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। महाकाल का रहस्य नीचे कथा को पढ़ के आप जान सकते हो ।
अन्य पौराणिक कथाओं
पौराणिक कथाओं के अनुसार उज्जयिनी में राजा चंद्रसेन का राज था। वह भगवान शिव के परम भक्त थे और शिवगुणों में मुख्य मणिभद्र नामक गण राजा चंद्रसेन के मित्र थे। एक बार राजा के मित्र मणिभद्र ने राजा चंद्रसेन को एक चिंतामणि प्रदान की जोकी बहुत ही तेजोमय थी। राजा चंद्रसेन ने मणि को अपने गले में धारण कर लिया, लेकिन मणि को धारण करते ही पूरा प्रभामंडल जगमगा उठा और इसके साथ ही दूसरे देशों में भी राजा की यश-कीर्ति बढ़ने लगी।
राजा के पर्ति सम्मा और यश देखकर अन्य राजाओं ने मणि को प्राप्त करने के लिए की प्रयास किए, लेकिन मणि राजा की अत्यंत प्रिय थी। इस कारण से राजा ने किसी को मणि नहीं दी। इसलिए राजा द्वारा मणि न देने पर अन्य राजाओं ने आक्रमण कर दिया। उसी समय राजा चंद्रसेन भगवान महाकाल की शरण में जाकर ध्यानमग्न हो गए।
जब राजा चंद्रसेन बाबा महाकाल( baba mahakal) के समाधिस्थ में थे, तो उस समय वहां गोपी अपने छोटे बालक को साथ लेकर दर्शन के लिए आई। बालक की उम्र महज पांच वर्ष थी और गोपी विधवा थी। राजा चंद्रसेन को ध्यानमग्न देखकर बालक भी शिव पूजा करने के लिए प्रेरित हो गया। वह कहीं से पाषाण ले आया और अपने घर में एकांत स्थल में बैठकर भक्तिभाव से शिवलिंग की पूजा करने लगा। कुछ समय बाद वह भक्ति में इतना लीन हो गया की माता के बुलाने पर भी वह नहीं गया।
माता के बार बार बुलानेपर भी बालक नहीं गया। क्रोधित माता ने उसी समय बालक को पीटना शुरू कर दिया औऱ पूजा का सारा समान उठा कर फेंक दिया। ध्यान से मुक्त होकर बालक चेतना में आया तो उसे अपनी पूजा को नष्ट देखकर बहुत दुख हुआ। अचानक उसकी व्यथा का गहराई से चमत्कार हुआ। भगवान शिव की कृपा से वहां एक सुंदर मंदिर निर्मित हुआ। मंदिर के मध्य में दिव्य शिवलिंग विराजमान था एवं बालक द्वारा सज्जित पूजा यथावत थी। यह सब देख माता भी आश्चर्यचकित हो गई।
जब राजा चंद्रसेन को इस घटना की जानकारी मिली तो वे भी उस शिवभक्त बालक से मिलने पहुंचे। राजा चंद्रसेन के साथ-साथ अन्य राजा भी वहां पहुंचे। सभी ने राजा चंद्रसेन से अपने अपराध की क्षमा मांगी और सब मिलकर भगवान महाकाल का पूजन-अर्चन करने लगे। तभी वहां राम भक्त श्री हनुमान जी सामने आए और उन्होंने गोप -बालक की गोद में बैठकर सभी राजाओं और उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित किया।
अर्थात शिव के अतिरिक्त प्राणियों की कोई गति नहीं है। इस गोप बालक ने अन्यत्र शिव पूजा को मात्र देखकर ही, बिना किसी मंत्र अथवा विधि-विधान के शिव आराधना कर शिवत्व-सर्वविध, मंगल को प्राप्त किया है। यह शिव का परम श्रेष्ठ भक्त समस्त गोपजनों की कीर्ति बढ़ाने वाला है। इसे लोक में यह अखिल अनंत सुखों को प्राप्त करेगा व मृत्योपरांत मोक्ष को प्राप्त होगा।
भस्म आरती क्या है?
भस्म आरती एक विशेष प्रकार की आरती है जो उज्जैन में ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से लगभग दो घंटे पहले) के दौरान की जाती है. पुजारी पवित्र मंत्रों का उच्चारण करते हुए महादेव को पवित्र राख (भस्म) चढ़ाते हैं. आरती करते समय इस तरह का वातावरण होता है कि भक्तों को उनके सामने परमात्मा की उपस्थिति का अहसास होता है.
भस्म आरती का क्या महत्व है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव को काल या मृत्यु का स्वामी माना गया है. इसी वजह से ‘शव’ से ‘शिव’ नाम बना. महादेव के अनुसार, शरीर नश्वर है और इसे एक दिन भस्म की तरह राख हो जाना है और शिव के अलावा किसी का भी काल पर नियंत्रण नहीं है. भगवान शिव को पवित्र भस्म लगाया जाता है, जो भस्म लगाए हुए ध्यान करते हुए दिखाई देते हैं.
भस्म आरती को लेकर मान्यताएं-
कहा जाता है कि भस्म आरती भगवान शिव को जगाने के लिए की जाती है इसलिए आरती सुबह 4 बजे की जाती है.
वर्तमान समय में महाकाल की भस्म आरती में कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किए गए भस्म का इस्तेमाल किया जाता है.
ऐसी मान्यता है कवर्षों पहले श्मशान के भस्म से आरती होती थी लेकिन अब कंडे के बने भस्म से आरती श्रृंगार किया जाता है.
नियम के अनुसार भस्म आरती को महिलाएं नहीं देख सकती हैं. इसलिए कुछ समय के लिए उन्हें घूंघट करना पड़ता है.
आरती के दौरान पुजारी एक वस्त्र धोती में होते हैं. इस आरती में अन्य वस्त्रों को धारण करने का नियम नहीं है.
उज्जैन का एक ही राजा है
और वह है महाकाल बाबा। विक्रमादित्य के शासन के बाद से यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता। जिसने भी यह दुस्साहस किया है, वह संकटों से घिरकर मारा गया। पौराणिक तथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुकता है। वर्तमान में भी कोई भी राजा, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री आदि यहां रात नहीं रुक सकता। राजा महाकाल श्रावण मास में प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं।
उज्जैन के पर्यटन, दर्शनीय स्थल
- महाकालेश्वर मंदिर mahakaleshwar
- हरसिद्धि मंदिर harsiddhi mandir
- विक्रम कीर्ति मंदिर vikaram kirti mandir
- काल भैरव मंदिर kaal bhairav mandir
- महाकुंभ मेला mahakumbha mela
- बडे गणेशजी का मंदिर bade ganesh mandir
- भर्तृहरि गुफाएँ bharthari gupha
- कैलादेह पैलेस kaliyadeh
इनके अलावा और भी अन्य बहुत सारी जगह है घूमने के लिए उज्जैन मे
1) उज्जैन का प्रसिद्ध मंदिर महाकालेश्वर मंदिर –Ujjain Ka Prasidh Mandir Mahakaleshwar Temple In Hindi
मध्य प्रदेश राज्य में रुद्र सागर झील के किनारे प्राचीन शहर उज्जैन में स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र और उत्कृष्ट तीर्थ स्थानों में से एक है। महाकालेश्वर मंदिर परिसर मराठा, भूमिज और चालुक्य शैलियों से प्रभावित है। इसमें एक विशाल प्रांगण है जो विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। मंदिर के अंदर पांच स्तर हैं और स्तरों में से एक भूमिगत स्थित है। दक्षिणामूर्ति महाकालेश्वर की मूर्ति को दिया गया नाम है और देवता दक्षिण की ओर मुख किए हुए हैं। इसे भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।
इस मंदिर में मूर्ति ओंकारेश्वर शिव की है और महाकाल मंदिर के ठीक ऊपर गर्भगृह में देवता प्रतिष्ठित हैं। यहां हर साल कई धार्मिक त्यौहार और उत्सव भी मनाए जाते हैं। महाशिवरात्रि के शुभ दिन मंदिर परिसर में एक विशाल मेला लगता है। इनके अलावा, मंदिर की भस्म-आरती भी देखने लायक होती है। यह आरती सुबह 4 बजे होती है। इस आरती को देखने के लिए भक्तों को कई तरह के नियमों का पालन करना होता है। मंदिर सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है।
2) उज्जैन में घुमे काल भैरव मंदिर – Ujjain Me Ghume Kal Bhairav Temple In Hindi
उज्जैन में काल भैरव मंदिर प्राचीन हिंदू संस्कृति के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। माना जाता है कि काल भैरव भगवान शिव के उग्र रूप में से एक हैं। मंदिर सैकड़ों भक्तों के लिए पवित्र स्थान है और मंदिर परिसर के आस-पास साधुओं को देखा जा सकता है। मंदिर परिसर के भीतर, एक बरगद का पेड़ है और उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग है। शिवलिंग नंदी की मूर्ति, बैल के ठीक सामने स्थित है।
इस मंदिर से साथ बहुत सारे मिथक जुड़े हुए हैं। भक्तों के बीच एक धारणा है कि जो अपने दिल के मूल से कुछ चाहता है, उसका फल हमेशा मिलता है। इस मंदिर में एक शिवलिंग है जो महाशिवरात्रि के दौरान हजारों पर्यटकों को इस धार्मिक स्थल की ओर आकर्षित करता है। महाशिवरात्रि के शुभ दिन मंदिर के मैदान में एक विशाल मेला लगता है।
3) उज्जैन में भरता है कुंभ मेला – Ujjain Me Bharta Hai Kumb Mela In Hindi
उज्जैन में लगने वाला कुंभ मेला एक हिंदू तीर्थ है जिसमें हिंदू और दुनिया भर के लोग इस पवित्र नदी में स्नान करने के लिए एक साथ इकट्ठा होते हैं। यह मेला प्रत्येक बारह वर्ष में केवल बारह दिनों के लिए एक बार लगता है। हरिद्वार में गंगा नदी का तट, नासिक में गोदावरी नदी, इलाहाबाद में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम और उज्जैन में क्षिप्रा नदी इस विशाल कार्निवल के लिए मुख्य स्थान हैं।
हरिद्वार, इलाहाबाद, नासिक और उज्जैन चार शहरों में से एक में हर तीन साल में कुंभ आयोजित होता है। आखिरी कुंभ मेला 2016 में उज्जैन में आयोजित किया गया था। अगला कुंभ मेला 2028 में उज्जैन में आयोजित किया जाएगा। यह माना जाता है कि इन नदियों में एक पवित्र डुबकी व्यक्तियों की आत्मा को साफ करती है और उन्हें उनके सभी पापों से मुक्त करती है ।
4) उज्जैन में घूमने लायक जगह कलियादेह पैलेस – Ujjain Ki Ghumne Layak Jagah Kaliadeh Palace In Hindi
एक द्वीप पर स्थित कलियादेह पैलेस काफी धार्मिक महत्व रखता है। इसका निर्माण 1458 ई में किया गया था। पैलेस के दोनों तरफ नदी का पानी भरा गया है। इतिहास के अनुसार एक बार एक बार सम्राट अकबर और जहांगीर ने इस भव्य स्मारक का दौरा किया था। पिंडारियों के शासनकाल के दौरान इसे तोड़ दिया गया था, लेकिन माधवराव सिंधिया ने इस स्मारक की आंतरिक सुंदरता को देखा और इसे पुर्नस्थापित करने का फैसला किया। यह किला पर्यटकों के लिए सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है।
5) भर्तृहरि गुफाएं उज्जैन पर्यटन स्थल – Bhartrihari Caves Ujjain Paryatan Sthal In Hindi
किंवदंती है कि यह वही स्थान है जहाँ विक्रमादित्य के सौतेले भाई भर्तृहरि और एक बहुत ही प्रसिद्ध कवि जीवन की सभी विलासिता को त्याग कर जीवन यापन करते थे। गडकालिका के मंदिर से सटे शिप्रा नदी के तट पर गुफाएँ स्थित हैं। यह गुफाएं एक शांत जगह पर है, इसलिए भृर्तहरी यहां एकाग्र होकर ध्यान करते थे।
6) उज्जैन में बडे गणेशजी के मंदिर जरुर जाये – Ujjain Ke Bade Ganeshji Ka Mandir Jarur Jaye In Hindi
बडे गणेशजी का मंदिर उज्जैन में एक भव्य मंदिर है जिसमें भगवान गणेश की सबसे बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर महाकाल मंदिर से कुछ ही दूरी पर है। जब आप यहां होते हैं, तो आप पंचमुखी हनुमान द्वार पर भगवान हनुमान का आशीर्वाद भी ले सकते हैं।
7) उज्जैन दर्शनीय स्थल गदकालिका मंदिर – Ujjain Ka Darshaniya Sthal Gadkalika Temple In Hindi
उज्जैन में गदकालिका मंदिर काफी धार्मिक महत्व रखता है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत काल में हुई थी, लेकिन मूर्ति समयुग के काल की है। हालांकि बाद में इस मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन ने कराया था और स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुर्ननिर्माण कराया था। यहां पर नवरात्रि के दिनों में विशाल मेला लगता है। मां कालिका के दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं।
कैसे पहुंचे उज्जैन
सड़क मार्ग द्वारा
MPSRTC ने इंदौर , भोपाल से उज्जैन के लिए सार्वजनिक बस सेवाओं का लाभ उठाया। उज्जैन नियमित बस सेवाओं द्वारा भी अच्छी तरह से जोड़ता है। यह पर आसानी से बस से आ सकते है महाकाल के दर्शन कैसे कर सकते हो ।
रेल मार्ग द्वारा
उज्जैन पश्चिमी रेलवे क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। यह भारत के सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, भोपाल, मालवा, इंदौर, दिल्ली और कई अन्य लोगों के लिए अपनी सीधी ट्रेन सेवाओं का लाभ उठाता है। mahakaleshwar jyotirling के दर्शन कर सकते है
हवाई मार्ग द्वारा
उज्जैन पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर में देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा है । यह उज्जैन से 55 किमी दूर स्थित है। सार्वजनिक और निजी घरेलू एयरलाइंस द्वारा देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा है यहा पर आ कर उज्जैन महाकाल मंदिर के दर्शन करे ।
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